History Of Ajab-Gajab : जानिए पुराने ज़माने के राजा-महाराजो के अजीबो गरीब सौक और महाराजा जयसिंह सहित 05 राजाओ के बारे में

History Of Ajab-Gajab : आजादी से पहले देश में राजाओ और महाराजाओ का राज हुवा करता था| और भारत में राज्यशाही ख़तम हो चुके है| पर आज भी कई जगहों पर उनके जो महल खड़े है| वो राजकीय ठाट-बाट की गवाह है| इसी सौक के लिए राजा और महाराजा प्रसिद्द रहे है| भारतीय इस जितना गौरव शाली राजाओ से भरा हुवा है| उतने ही उनके अजीबो गरीब कस्से भी मशुर है| वहीं कई बार उनके अलग तरह के व्यक्तित्व के बारे में भी बताया जाता है।

आज हम आपको कुछ ऐसे राजाओं से जुड़े ऐसे किस्सों के बारे में बताने जा रहे हैं| कुछ राजाओं ने इतिहास में History Of Ajab-Gajab अमर होने के लिए अपने शौर्य पराक्रम युद्ध नीति और वीरता का परिचय दिया। तो कुछ न जाने अपने अजीबो-गरीब शौक की वजह से इतिहास में अमर हो गए। और उनके किस्से के बारे में आपने भी देखा या सुना जरुर होगा| तो आइये जानते है भारतीय राजाओ के कुछ अजीबो गरीब इन किस्सों के बारे में –

महाराजा जगजीत सिंह (History Of Ajab-Gajab)

महाराजा जगजीत सिंह – हमारा भारत देश बहुत ही कमाल का देश है। यह तो आपको पता ही होगा कि यहां लोकतंत्र में पहले राजा-महाराजाओं का राज हुआ करता था| हालांकि राजाओं के आधीन कई राज्य हुआ करते थे| और इनके राज करने का तरीका भी अलग हुआ करता था। जितना इनके राज करने का तरीका अलग था उतने ही इनके शौक भी अजीबो-गरीब हुआ करते थे। कोई कुत्ते की शादी पर अवकाश घोषित कर देता था, तो कोई विदेशी कारों को खरीद कर उनमें कूड़ा उठवाने का काम करता था। लेकिन आज हम उस राजा के बारे में बात कर रहे हैं| जो लक्जरी ब्रांड लुई विटन के सबसे बड़े ग्राहक थे|

महाराजा जगजीत सिंह कपूरथला के महाराज थे, जगजीत सिंह के सौक भी काफी अलग थे| वो लक्जरी ब्रांड लुई विटन के सबसे बड़े सौकीन थे, उनके पास करीब 60 बड़े लुई विटन  के शानदार बक्शे थे| यात्रा के बेहद शौकिन महाराज जगजीत सिंह अपने साथ इन बक्सो को ले जाते थे| जगतजीत पैलेस में कपूरथला रियासत के पूर्व महाराज जगतजीत सिंह रहा करते थे। 200 एकड़ में फैला यह महल वास्‍तुशिल्‍प का खूबसूरत नमूना है, जो ‘पैलेस ऑफ़ वर्सेलस’ और ‘फ़ॉनटेनब्लियू’ की याद दिलाता है। महाराजा जगजीत सिंह पांच शादियां किये थे|

महाराजा महाबत खान उर्फ़ रसूल खान

महाराजा महाबत खान,रसूल खान – जूनागढ़ के ये राजा अपने अनोखी सौक के लिए प्रसिद्द थे| उनको कुत्ते पालने का एक अनोखा सौक था, उनके पास करीब 8 सौ कुत्ते थे| हर कुत्ते की सेवा में एक-एक सेवक हुवा करता था| और ये कुत्तो को अगर कुछ हो जाता था, तो इन कुत्तो का इलाज ब्रिटिश सर्जन से होता था| और वो इन कुत्तो का सादी करवाने का भी सौक रखते थे| उस समय एक कुत्ते की शादी करवाने में करीब 22 हजार रूपये खर्च होते थे, जो वर्तमान में करीब 2 करोड़ रूपये के बराबर है| साथ ही जिस दिन शादी होती थी, उस दिन राज्य में सभी को छुट्टी भी दिया जाया था| किसी एक कुत्ते के मरने पर एक दिन का राष्ट्रिय शोक घोषित किया जाता था|

नवाब महाबत खान के इस शौक का जिक्र विख्यात इतिहासकार डॉमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में भी किया है। रोशना को शादी के दौरान सोने के हार, ब्रेसलेट और महंगे कपड़े पहनाए गए थे। इतना ही नहीं मिलिट्री बैंड के साथ गार्ड ऑफ ऑनर से 250 कुत्तों ने रेलवे स्टेशन पर इनका स्वागत किया था। नवाब महाबत खान ने इस शादी में शामिल होने के लिए तमाम राजा-महाराजा समेत वायसराय को आमंत्रित किया था। लेकिन वायसराय ने आने से इंकार कर दिया।

महाराजा निजाम मीर उस्मान अली खां

महाराजा निजाम मीर उस्मान अली खां – हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खां के सौक भी कुछ कम नहीं थे| इन्हें कीमती जवाहरातो का बड़ा ही सौक था| दुनिया के सबसे बड़े इंसानों में से एक माना जाता था| 1340 करोड़ के डायमंड का पेपरवेट की तरह यूज करना आम बात नहीं थी| कहा जाता है उस्मान अली खान का बेडरूम साल में केवल एक बार साफ होता था| उनके बेडरूम में बेशुमार दौलत ऐसे ही जमीन पर पड़ी रहती थी, वह 20 करोड़ डॉलर यानि 1340 करोड़ की कीमत वाला डायमंड को पेपर में लपेटकर पेपरवेट की तरह इस्तेमाल किया करते थे| उनके तहखाने और दुछत्तियां हीरे-जवाहरात से भरी रहती थी| उनके पास उस वक्त 20 लाख पाउंड से ज्यादा का कैश था जिसे वह न्यूजपेपर में लपेटकर रखते थे|

लेकिन हर साल चूहे उनके नोट कुतर जाते थे|हैदाराबाद के अंतिम शासक भले ही कंजूस थे लेकिन दानी बहुत थे| एक कहानी मशहूर है कि एक बार उन्होंने अपने सेवक को बाजार से 25  रुपये का कंबल लाने को कहा था| सेवक ने पूरा बाजार छान मारा लेकिन उसे 25 रुपये का कंबल नहीं मिला| वह खाली हाथ लौट आया और उसने निजाम से कहा कि बाजार में 35 रुपये से सस्ता कोई कंबल नहीं था| निजाम ने सेवक की बात सुनी और पुराने कंबल से ही सर्दी काटने का निश्चय किया| लेकिन कुछ घंटों के बाद उन्होंने बीएचयू के लिए 1 लाख रुपये का फंड दिया था| उस्मान अली खान की कुल संपत्ति उस वक्त 236 बिलियन डॉलर से अधिक आंकी गई थी|

महाराजा जयसिंह History Of Ajab-Gajab

महाराजा जयसिंह – अपने राजसिंह ठाट के लिए तो हर कोई राजा जाना जाता है, लेकिन अलवर के महाराज जयसिंह मशहूर है, अपने ऐसे बदले के लिए जिन्होंने इनका नाम इतिहास के पन्नो में अमर कर दिया है| जयसिंह द्वितीय का जन्म 14 नवम्बर, 1688 ई. को जयपुर में हुआ। राजा जय सिंह, एक बार लंदन यात्रा पर निकले थे वहां, वो सामान्य कपड़ों में एक रॉयल रोयस के शोरूम गए। वहां जो उनके साथ व्यहार हुआ उसे देख उन्हें बहुत बुरा लगा इसके बाद वो एक बार फिर अपने पूरे राजसी ठाठ से रॉयल रोयस के शोरूम पहुंचे और 10 कारें खरीद लाए।

अगर आपको लगता है उनका बदला यहीं पूरा रह गया तो आपको बता दें कि, विदेशी लाई उन कारों की छत हटवाकर उन्‍हें कूड़ा उठाने में लगा दिया। बाद में जब रॉयल रोयस के अधिकारियों को इस बात का पता चला तो उन्होंने राजा जयसिंह से माफी मांगी। और हैदराबाद के आखरी निज़ाम विश्व के सबसे महंगे हीरे ‘जेकब’ का इस्तेमाल पेपर वेट के रूप में किया करते थे। उस हीरे का आकर शतुरमुर्ग के अंडे के बराबर था, और उस समय उसकी कीमत करीब 50 लाख थी।

महाराजा गंगा सिंह (History Of Ajab-Gajab)

महाराजा गंगा सिंह – बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह का अपने जनता के प्रति प्रेम दरसाने का अंदाज काफी अलग था| इनके बारे में कहा जाता है, कि वो गरीबो में सोना खूब बाटते थे| कहा जाता है, की एक बार उन्होंने अपने वजन के बराबर का सोना गरीबो में बाटा था| महाराजा गंगा सिंह का जन्म 13 अक्टूबर 1880 को हुआ था| 1894 में महाराजा गंगा सिंह ने किसानों से लगान लेने की सीमा को तय कर दिया ताकि किसानों के शोषण को रोका जा सके उन्होंने बीकानेर में जेल सुधार और न्याय के कार्य भी किए थे प्रथम विश्व युद्ध के बाद सभी देश एक जगह पर एकत्रित ताकि इस खून खराबे को रोका जा सके|

साल 1919 में हुए इस पेरिस शांति सम्मेलन में रियासतों की तरफ से केवल एक राजा को बुलाया गया था और वह थे महाराजा गंगा सिंह इसके बाद 1930,1931,1932 में हुए तीन गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले मे भी महाराजा गंगा सिंह एकमात्र राजा थे| महाराजा गंगा सिंह ने 1913 में “प्रजा प्रतिनिधि सभा” की भी स्थापना की थी 1921 में स्थापित नरेंद्र मंडल के वह पहले अध्यक्ष बने थे| जीवन में हर लड़ाई को जीतने वाले महाराजा गंगा सिंह 1943 में कैंसर की जंग हार गए कैंसर की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी |

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