World Soil Day : जानिए विश्व मृदा दिवस का इतिहास और थीम क्या है

World Soil Day : मिट्टी पृथ्वी पर एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। जो प्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों मानव जातियों और जीव जंतुओं को सहायता करते है। लेकिन रसायनिक खाद कीटनाशक, और कचरे की अध्याधिक इस्तेमाल से मिट्टी प्रदूषित हो रही है। इसके अलावा कई ऐसे कारण भी है, जिससे मिट्टी खराब हो रही है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है,यहां के लगभग 70 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए है। अगर किसी कारण वश देश की कृषि पर कोई समस्या आती है, तो किसानों के साथ साथ देश आर्थिक व्यवस्था भी डगमगा जाति है। इसलिए किसानों को कृषि से जुड़े सभी पहलुओं पर समझ होना बहुत जरूरी है। आजकल सारासायनो का असर मिट्टी पर भी पड़ रही है।]

इसके अलावा कई क्षेत्रों में सही प्रपंधन न होने की वजह से मिट्टी पर भी असर पड़ रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2002 (intranation union of soil sciences) यानी की आयुर्र एस एस द्वारा 05 को मृदा दिवस मनाया (World Soil Day) डे मनाया जाता है।

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World Soil Day

World Soil Day कब मनाया जाता है?

दिसंबर 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 05 दिसंबर 2014 को पहला आधिकारिक मृदा दिवस मनाने की घोषणा की गई। जिसे हर साल लोग 5 दिसंबर को मनाया जाता है, जिससे किसानों में जागरूकता भी आई है। आज का दिन फिर किसानों तक जरूरी संदेश पहुंचाने का है। ऐसे में 5 दिसंबर को इस दिन को मनाने का उद्देश्य केवल लोगों को मिट्टी से संबंधित समस्याओं, इसमें आने वाली चुनौतियों आदि के बारे में जागरूक करना है। क्योंकि मिट्टी का ग्लोबल लेबल बिगड़ जाए तो यह खतरा का कारण बन जाता है।

पिछले 70 वर्षों में भोजन में विटामिन और पोषक तत्वों की मात्रा में भारी कमी आई है, और यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया भर में 2 अरब लोग सूक्ष्म पोषक कुपोषण से पीड़ित हैं,

5 दिसंबर को World Soil Day विश्व मृदा दिवस क्यों मनाते है

मृदा विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय संघ ने 2002 में 5 दिसंबर को हर साल विश्व मृदा दिवस मनाने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त, एफएओ ने किंगडम के नेतृत्व में वैश्विक मृदा भागीदारी के ढांचे के भीतर वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में विश्व मृदा दिवस के आधिकारिक लॉन्च का समर्थन किया।  थाईलैंड का जून 2013 में, एफएओ सम्मेलन ने सर्वसम्मति से विश्व मृदा दिवस का समर्थन किया।

और 68वें संयुक्त राष्ट्र महासभा को इसे औपचारिक रूप से अपनाने के लिए कहा।  संयुक्त राष्ट्र महासभा के 68वें सत्र ने दिसंबर 2013 में 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में घोषित किया। और पहला soil day 5 दिसंबर 2014 को पहला विश्व मृदा दिवस मनाया गया।

World Soil Day 2022 का थीम

मिट्टी हमारे लिए कितना जरूरी है, और किसानों को मिट्टी की उपज को बनाए रखने के लिए क्या कुछ नही करना पड़ता है। और विश्व मृदा दिवस की इस साल की थीम है “सॉइल्स ऑफ वेयर फूड बिगिन्स” इसका उद्देश्य यह है, कि सॉइल मैनेजमेंट में बढ़ती चुनौतियों का समाधान कर मिट्टी के प्रति लोगों में जागरूकता को बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी में सही सुधार के लिए सोसाइटीज को प्रोत्साहित कर हेल्दी एकोसिस्टम और मनुष्य के लिए हेल्दी एनवायरनमेंट को बनाए रखना है।

क्योंकि जब मिट्टी स्वस्थ रहेगी तभी अन्ना की भी बढ़ोतरी होती है। और ये भी कहा जाता है, कि कच्ची मिट्टी का बना रहता है,उम्मोदो का घर टूट जाता है अक्सर बारिश में उम्मीदों का घर ये सब संदेश हमारे देश की मिट्टी से जुड़ा हुआ और मिट्टी का सरंक्षण करना हमारे लिए अच्छा ही होता है।

World Soil Day का इतिहास क्या है?

आजकल सारासायनो का असर मिट्टी पर भी पड़ रही है। इसके अलावा कई क्षेत्रों में सही प्रपंधन न होने की वजह से मिट्टी पर भी असर पड़ रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2002 (intranation union of soil sciences) यानी की आयुर्र एस एस द्वारा 05 को मृदा दिवस मनाया (World Soil Day) डे मनाया जाता है।

2002 में अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (IUSS) द्वारा विश्व मृदा दिवस मनाने की सिफारिश की गई थी। एफएओ (FAO) सम्मेलन ने सर्वसम्मति से 20 दिसंबर 2013 में 68वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसे मनाने की आधिकारिक घोषण की। 2002 में, इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉइल साइंस (IUSS) ने यह प्रस्ताव दिया था कि 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाया जाए।

World Soil Day पर मिट्टी बचाओ अभियान

2002 में, इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉइल साइंस (IUSS) ने यह प्रस्ताव दिया था कि 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाया जाए। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में सबसे पहले मिट्टी बचाओ आंदोलन का शुरुवात सन 1977 में हुआ था। यहां पर कुछ बांध की वजह से मिट्टी दलदल में बदलती जा रही है। कृषि के जरिए जीवन यापन करने वाले लोगो के लिए यह बड़ा अभिशाप था। तभी से किसानों ने मिट्टी बचाओ आंदोलन का सुरुवात किया है। एफएओ (FAO) सम्मेलन ने सर्वसम्मति से 20 दिसंबर 2013 में 68वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसे मनाने की आधिकारिक घोषण की थी।

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