The Chernobyl Incident : इस दुनिया का हर एक जीव, हर एक एलिमेंट, हर एक प्लानेट, इंटायर मेटर ऐटम (परमाणु) से बना है| ऐटम(परमाणु) में एक एनर्जी होता है, जो दुनिया को मिनटों में ध्वस्त कर सकता है| एक ऐटम(परमाणु) बहुत ज्यादा छोटा होता है| यूक्रेन के चेर्नोबिल में हुई परमाणु दुर्घटना को दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा माना जाता है| क्योकि अगर हम चेर्नोबिल हादसा पर एक नजर डालते हैं, तो 26 अप्रैल 1986 के उस एक घंटे पर जिसमें एक टरबाइन टेस्ट होना था|
लेकिन हुआ कुछ और ही प्रीप्यत शहर गहरी नींद में सो रहे थे। और 3 किलोमीटर दूर चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में रोज की तरह रात की पाली के इंजीनियर और बाकी कर्मचारी अपने काम में जुटे थे। सब कुछ ठीक चल रहा था| कि तभी रात के करीब डेढ़ बजे धमाका हुआ। और दुनिया का सबसे भयंकर परमाणु हादसा, चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में हुवा था| एक रात में मुर्दा हो गया था पूरा शहर कोई नही बच पाया था|
The Chernobyl Incident चेर्नोबिल कहां है?
यूक्रेन की राजधानी कीव (Kiev) से करीब 80 मील उत्तर में चेर्नोबिल स्थित है| प्लांट में काम करने वाले मजदूरों और उनके परिवारों के रहने के लिए न्यूक्लियर प्लांट से कुछ मील की दूरी पर एक छोटे से शहर प्रिपयत (Pripyat) को बसाया गया था| चेर्नोबिल पावर प्लांट के निर्माण की शुरुआत 1977 में हुई थी| पावर प्लांट में होने वाले एक नियमित परीक्षण को गलत तरीके से किया गया। उसके बाद प्लांट में हुए दो बड़े विस्फोटों ने रिएक्टर की 1,000 टन की छत को बड़ा ही तेजी से उड़ा ले गया जिससे कर्मचारी को और पूरा शहर को इसका भुगतान करना पड़ा।
The Chernobyl Incident चेर्नोबिल परमाणु आपदा क्या था ?
चर्नोबिल प्लांट का काम पूरा होने ही वाला था, और प्रिप्यत के डिफेंस के लिए सोविसत के नेता इतने ज्यादा चिंतित थे। कि वहां एक ओवर द हाराइजन रडार सिस्टम भी विकसित कर दिया। ये एक बेलस्टिक मिसाइल अर्ली वॉर्निग सिस्टम था। मतलब, कल को प्रिप्यत पर कोई हमला होता है। तो इसकी जानकारी पहले ही सोविसत सेना को मिल जाए। इसके पीछे की वजह थी कि वह चेर्नोबिल के पॉवर प्लांट को सुरक्षित रखना थे।
क्योंकि इससे काफी तबाही मच सकती थी। लेकिन आगे की राह बेहद कठिन होने वाली थी। चेर्नोबिल न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में कुल चार यूनिट थे। पहला 1977 में जबकि दूसरा 1978, तीसरा 1981 जबकि चौथा 1983 में तैयार हुआ। चेर्नोबिल सैन्य लिहाज से बहुत अहम नहीं है, लेकिन इसकी लोकेशन अहम है। यह बेलारूस के रास्ते कीव तक पहुंचने का आसान रास्ता है। बेलारूस की सीमा से इसकी दूरी महज 20 किलोमीटर है।
26 अप्रैल The Chernobyl Incident
26 अप्रैल 1986 चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में स्थानीय बिजली के गुल होने की स्थिति को लेकर टेस्ट किया जा रहा था| कोशिश यह थी कि बिजली जाने और डीजल जेनरेटरों के चलने तक एक टर्बोजेनरेटर फीड वॉटर पम्पों को पावर दे सकता है| और उस समय यह एक समान्य टेस्ट की तरह रात में शुरू हुआ| रात को 12:28 बजे ऑपरेटर कंप्यूटर को रिप्रोग्राम करने में नाकाम रहे| इसकी वजह से रिएक्ट-4 30 फीसदी पावर पर चलता रहा|
इसकी वजह से पैदा होने वाली बिजली में एक फीसदी कमी आई| रिएक्टर में सॉलिड वाटर भर गया| और रिएक्टर की स्थिति बहुत गंभीर हो गयी वह बहुत ज्यादा गरम हो गई| फिर पावर को दोबारा कम स्तर पर लाने के लिए ऑपरेटर ने कोर से कंट्रोल रॉड्स निकाली| तो कोर में 26 से कम कंट्रोल रॉड्स बचीं थी| लेकिन ऐसा करने के बावजूद पावर सिर्फ सात फीसदी बढ़ी| इसकी वजह से ‘जेनन पॉयजनिंग इफेक्ट’ शुरू हुआ|
- जेनन जेनन पायजन 135 न्यूट्रॉन को सोखता है| इसे पॉयजन यानी जहर कहा जाता है|
- 135 परमाणु विखंडन की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में मदद करता है| सामान्य स्थिति में न्यूट्रॉन सोखने के साथ यह जलकर बहुत ज्यादा क्षीण हो जाता है|
- लेकिन पावर लेवल 1600 मेगावॉट से नीचे आने पर 135 जेनन में अपघटित होने लगता है| और ऐसी स्थिति में रिएक्टर को ऑटोमैटिक शटिग डाउन से बचाने के लिए इमरजेंसी कोर कूलिंग सिस्टम और दूसरे सिस्टम सर्किट बंद कर दिए गए|
- जेनन पॉयजनिंग से बचने के लिए फिर ज्यादा कंट्रोल रॉड्स निकाली गईं| इसके बाद कोर में छह कंट्रोल रॉड्स ही बचीं| ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने के बावजूद रिएक्टर को तुरंत शट डाउन नहीं किया जा सकता था|
- आठ कूलिंग पम्प लो पावर पर चलने लगे सामान्य परिस्थितियों में छह पम्प पूरी पावर से चलते हैं, लेकिन चेरनोबिल में जारी गड़बड़ी की वजह से रिएक्टर 4 में सालिड वाटर नही रहने की वजह से यह खतरनाक साबित हुवा।
- जब शुरु में टेस्ट किया गया, तब टरबाईन ट्रिप अचानक से बंद हो गई| इसकी वजह से आठ टरबाईन में चार टरबाईन सर्कुलेशन करने वाले पम्प बंद हो गए| स्क्रैम सर्किट अब भी बंद था|
- पावर में ठंडक कम पड़ने के कारण ट्यूब खाली होने लगीं और एटामिक रियेक्सन तेज होने लगी और वह अनियंत्रण होकर बहुत ज्यादा भाप बनने लगी|
- आपरेटर को शक हुई की इस स्थिति को इमरजेंसी मानते हुए सभी कोरों में कंट्रोल रॉड्स डालने और रिएक्टर को शट डाउन करने का बटन दबाया|
- रिएक्टर सिस्टम में एक डिजायन संबंधी कमी थी जिस पर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था| कंट्रोल रॉड्स के अंतिम छोर पर छह इंच की ग्रेफाइट की टिप लगी थी| यही टिप पहले कोर में गई और वहां से पानी को हटा दिया| पानी हटते ही कुछ ही सेकेंड में पावर बढ़ गई| सामान्य परिस्थितियों में इतनी पावर बढ़ने का असर बहुत कम देर तक रहता है| लेकिन चेरनोबिल का रिएक्टर नंबर चार सामान्य परिस्थितियों में नहीं चल रहा था| चार सेकेंड में पावर 100 गुना बढ़ गई|
- जबरदस्त गर्मी की वजह से कोर टूटने लगे, और ईंधन की बांधने वाले यन्त्र में दरारें पड़ गईं| कंट्रोल रॉड चैनल्स का आकार गड़बड़ा गया लगातार बन रही तेजी से भाप की वजह से स्टीम ट्यूब फट गई| कई टन भाप और पानी सीधे गर्म रिएक्टर में घुस गया|
- भाप के दबाव की वजह से रिएक्टर में जोरदार धमाका हुआ| धमाका इतना जबरदस्त था कि रिएक्टर के ऊपर सीमेंट से बनाई गई शील्ड उड़ गई| शील्ड रिएक्टर की इमारत के छत को अपने साथ उड़ाते हुए ले गया| इस बड़े सुराख से परमाणु विकिरण सीधे वायुमंडल में फैलने लगा|
- रिएक्टर की छत में लगी भंयकर आग को काबू में किया गया, ज्यादातर आग पर काबू पा लिया गया लेकिन इन कोशिशों के बावजूद ग्रेफाइट आग पकड़ गई।
- जब शुरु में टेस्ट की गयी, तब टरबाईन ट्रिप अचानक से बंद हो गई| और इसकी वजह से आठ टरबाईन में से चार टरबाईन का सर्कुलेशन करने वाले पम्प बंद हो गए| और उसी समय स्क्रैम सर्किट भी बंद था|
1,25,000 लोगो की मौत
यूक्रेन की सरकार ने 1995 में बताया कि चेर्नोबिल परमाणु हादसे में करीब 1,25,000 लोगों की मौत हुई| रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है, कि दुर्घटना में 50 से कम लोग मारे गए थे| वहीं, 9,000 लोग चेर्नोबिल के रेडिएशन के संपर्क में आने से हुए कैंसर की वजह से मारे गए।
चेर्नोबिल आपदा से हुए स्वास्थ्य प्रभाव अस्पष्ट बना हुआ है| दूसरी ओर, प्रिपयत में रहने वाले करीब 50 हजार लोगों को वहां से बाहर निकाला गया| लोग अपने घरों और सामानों को छोड़कर वहां से जान बचाकर भाग गए| आज भी उस शहर में मौत का तांडव है और कहते है, की अभी और कई साल लग जायेंगे रेडिएसन को खतम होने में वंहा की आबादी आज भी 0 ही दिखता है।
अभी भी खतरा है, चेर्नोबिल प्लांट में
हादसे के बाद कुछ लोग एक पुल से विस्फोट को देख रहे थे। कहते हैं कि उनमें से एक भी बाद में जिंदा नहीं बचा। उस पुल को द ब्रिज ऑफ डेथ कहते हैं। हादसे के बाद और बड़ा हादसा रोकने के लिए 400 कोयला खनिकों ने अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक उनमें से करीब 100 लोग 40 साल की उम्र में ही मर गए थे। रूसी सेना द्वारा इस प्लांट पर कब्जा करने के बाद यूक्रेन को डर है कि कहीं यहां से फिर से रेडिएशन का रिसाव न होने लगे। कहते हैं कि परमाणु 26 हजार साल तक हवा मे जिंदा रह सकते हैं।
इसलिए इस प्लांट से खतरा हमेशा बना रहेगा।जिस रिएक्टर में विस्फोट हुआ था, उसमें से रेडिएशन रोकने के लिए उसे एक सुरक्षात्मक उपकरण से ढका गया था और पूरे संयंत्र को निष्क्रिय कर दिया गया था। लेकिन हादसे के बाद आग बुझाने के लिए जिन फायर फाइटर्स को लाया गया था उनके रेडिएशन युक्त कपड़े अभी भी प्रिप्यात अस्पताल में कैद हैं। आज भी वो रेडियोएक्टिव हैं।
चेरनोबिल रिएक्टर 15 दिसंबर 2000 में हमेशा के लिए बंद
चेर्नोबिल एक ऐसा शहर है, जहाँ एक परमाणु डिजास्टर के कारण पूरा शहर खाली पड़ गया, और एक रात में ‘मुर्दा’ हो गया था पूरा शहर कई सालों के वैज्ञानिक रिसर्च और सरकारी जांच के बावजूद अब भी इस हादसे को लेकर कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं. सबसे बड़ा सवाल ये है कि यहां से से हो रहे विकिरण यानी रेडिएशन (Radiation) का असर कब खत्म होगा| अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है| और आज भी उस शहर की आबादी आप गूगल सर्च करोगे तो भी 0 ही दिखता है| और चेरनोबिल रिएक्टर 15 दिसंबर 2000 में हमेशा के लिए बंद किया गया है।
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