नौटप्पा की इस कड़कती धुप में सारा शहर भट्टी की आग की तरह धधक रहा है. दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में पड़ रही भीषण गर्मी ने 60 -70 साल पुराना रिकॉर्ड को तोड़ कर रख दिया है. दिल्ली में पड़ रही गर्मी ने 52 डिग्री सेल्सियस का पारा पार कर लिया है. इस भीषण गर्मी में टेंपरेचर 52.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया. यह राष्ट्रीय राजधानी में अब तक दर्ज किया गया अधिकतम टेंपरेचर है. जबकि गुरुवार को इसी स्थान पर टेंपरेचर 49.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था.
दिल्ली भर में कई मौसम केंद्र हैं, जिनमें से प्रत्येक एक विशेष स्थान पर टेंपरेचर रिकॉर्ड करता है. कई ऑब्जर्वेटरी और ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन शहर के भीतर विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं, लेकिन कोई भी एक ऑब्जर्वेटरी या स्टेशन नहीं है जो पूरी दिल्ली का औसत तापमान बताता हो. पालम, लोधी रोड, रिज, आयानगर, जाफरपुर, मुंगेशपुर, नजफगढ़, नरेला, पीतमपुरा, पूसा, मयूर विहार और राजघाट पर तापमान दर्ज किया जाता है.
आपके मोबाइल फोन पर मौसम/टेंपरेचर ऐप निकटतम स्टेशन पर टेंपरेचर दिखाता है, जो जरूरी नहीं कि आधिकारिक भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) स्टेशन का हो. यही बात आपके फोन पर AQI यानी वायु प्रदूषण डेटा के लिए भी लागू होती है. दिल्ली शहर में पीतमपुरा से राजघाट तक ड्राइव करते हैं, तो आपको संभवतः अपने फोन पर कई अलग-अलग टेंपरेचर दिखाई देंगे. यही नहीं बल्कि सभी राज्यों का यही हाल चल रहा है सभी जगह तापमान अलग अलग हो रहा है.
दिल्ली जैसी बड़ी शहरी जगह पर कई मानवजनित कारक भी भूमिका निभाते हैं,फुटपाथ, इमारतों, सड़कों और पार्किंग स्थलों की सघनता शामिल है. सामान्य तौर पर, कठोर और सूखी सतहें कम छाया और नमी प्रदान करती हैं, जिससे टेंपरेचर बढ़ता है. वहां टेंपरेचर अधिक होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कंक्रीट हवा की समतुल्य मात्रा की तुलना में लगभग 2,000 गुना अधिक गर्मी धारण कर सकती है.
किसी स्थान के ‘अरबन हीट आईलैंड बनने की आशंका तब अधिक होती है जब वहां पेड़, वनस्पति और वॉटर बॉडीज नहीं होते हैं. घने पेड़ टेंपरेचर में कमी लाते हैं, क्योंकि वे छाया प्रदान करते हैं, और पौधों से वाष्पोत्सर्जन और वॉटर बॉडीज से वाष्पीकरण की प्रक्रियाएं ठंडक पैदा करती हैं. दिल्ली में इसका प्रमाण बड़े पार्क और शहरी जंगलों के आस पास के एरिया में होने वाला कूलिंग इफेक्ट है.