Guru Ghasidas Jayanti : हर साल 18 दिसंबर को गुरुघासी दास का जयंती मनाया जाता है। यह छत्तीसगढ का वो पुरखा है, जो मानव समाज को एक होने का ज्ञान दिया था। मनखे मनखे एक समान का उपदेश देने वाले बाबा का जन्म दिन हर साल 18 दिसम्बर को पालो चढ़ाने और उसको नमन करने का दिन है।
Guru Ghasidas Jayanti क्यों मनाई जाती है?
बाबा गुरुघासीदास का जन्म 18 दिसंबर को छत्तीसगढ की एक गिरौद नाम की एक गांव में हूवा था। उनके पिता का नाम महगू दास था तथा पिता का नाम अमरौतिन था। एवम उसकी पत्नी का सफुरा था जिन्होने बाबा के सच्चे कर्म करने में उनका सदा साथ दिया। बाबा गुरु घासीदास का झलक आपको आज भी गिरौद में आपको देखने को मिल जाएगा।
Guru Ghasidas Jayanti समाज से मिटाई भेदभाव
छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज की स्थापना की थी, जो सतनाम धर्म (जिसका अर्थ है सत्य) और समानता पर आधारित है। कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया था। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने जाति व्यवस्था की बुराइयों का अनुभव किया, जिसके बाद जाती मतभेद समाज में सामाजिक गतिशीलता के समाधान को खोजने के लिए उन्होंने पूरे छत्तीसगढ़ की यात्रा की।


घासीदास की सत्य के प्रति अटूट आस्था की वजह से ही इन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के ‘सप्त सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है।
Guru Ghasidas Jayanti सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा
गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा की और अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता की सेवा के कार्य में किया। उनका मानना था कि समाज में हर व्यक्ति समान हैसियत रखता है. वे पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे और उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार के खिलाफ थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में समाज के लोगों को प्रेम और मानवता का संदेश दिया।
Guru Ghasidas Jayanti में बाबा को सफेद पालो चढ़ाने की परंपरा
कहते है,की गुरु घासीदास ने तपस्या से अर्जित की गई अपनी शक्तियों से कई चमत्कारिक कार्य किए है, जिसका प्रतीक आपको आज भी गिरौदपुरी जहां पर बाबा का धाम है, वहां पर जाने से गुरु घासीदास बाबा के अलौकिक ज्ञान के बारे में पता चलता है। उनके संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए व्यापक तौर पर हुआ है। बाबा गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को प्रेम और मानवता का संदेश दिया। संत गुरु घासीदास की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। उनके जन्मोत्सव को पूरे राज्य में धूमधाम से मनाया जाता है। और बाबा की मंदिर सफेद पालो चढ़ाकर बाबा की पूजा की जाती है।


Guru Ghasidas ने बैल को हल में जोतो का उपदेश दिया
गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। बाबा गुरु घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। जिनके शिक्षा आज हमारे जीवन में कई लोगो के लिए उपदेश बना है।
Guru Ghasidas ने की गिरौदपुरी की स्थापन
वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ पर समाधि लगाए इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की। छत्तीसगढ़ राज्य में गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर से एक माह तक बड़े उत्सव के रूप में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। गिरौदपुरी में बाबा के चमत्कार का अनेक कई प्रकार की कुंड आपको देखने को मिलेगा। जिसमे का पानी बहुत मीठा होता है।


Guru Ghasidas ने छाता पहाड़ और जैतखाम की स्थापना
बाबा गुरु घासी दास सत्य और अहिंसा के पुजारी थे वो जाट पात भेद भाव को खतम करने के लिए कई वर्षो तक छाता पहाड़ में तपस्या में लीन रहे और लोगो को ये जागरूक भी कराया की सत्य की रह पर चले। उन्होने जैत खाम की स्थापन की और तभी से लोग बाबा को हर साल सफेद पालो चढ़ाकर उसके मंदिर में मत्था टेक पूजा करके प्रसादी बाटते है। और यह काम निरंतर दिसम्बर महीने तक चलता रहता है।
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